Natasha

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तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी

उसने कहीं सुना था कि सुअर को मारने के लिए उस पर खौलता पानी डालते हैं। लेकिन नत्थू के पास खौलता पानी कहाँ था। एक बार चमड़ा साफ़ करते समय सुअर की चर्बी की बात चली थी। और उसके साथी भीखू चमार ने कहा था, ‘‘सुअर की पिछली टाँग पकड़कर सुअर को उलटा कर दो। गिरा हुआ सुअर जल्दी से उठ नहीं सकता। फिर उसके गले की नस काट दो। सुअर मर जायेगा।’’ नत्थू ये सब तरकीबें कर चुका था। एक भी तरकीब काम नहीं आयी थी। इसके एवज़ उसकी अपनी टाँगों और टख़नों पर ज़ख्म हो चुके थे। चमड़ा साफ़ करना और बात है, सुअर मारना बिल्कुल दूसरी बात। जाने किस ख़ोटे वक्त उसने यह काम सिर पर ले लिया था। और अगर पेशगी पैसे नहीं लिये होते तो नत्थू ने कब का सुअर को कोठरी में से धकेलकर बाहर खदेड़ दिया होता।

‘‘हमारे सलोतरी साहिब को एक मरा हुआ सुअर चाहिए, डाक्टरी काम के लिए।’’ मुराद अली ने नत्थू से कहा था जब वह खाल साफ़ कर चुकने के बाद नल पर हाथ-मुँह धो रहा था।
‘‘सुअर ? क्या करना होगा मालिक ?’’ नत्थू ने हैरान होकर पूछा था।
‘‘इधर पिगरी के सुअर बहुत घूमते हैं, एक सुअर को इधर कोठरी के अन्दर कर लो और उसे काट डालो।’’
नत्थू ने आँख उठाकर मुराद अली के चेहरे की ओर देखा था।
‘‘हमने कभी सुअर मारा नहीं मालिक, और सुनते हैं सुअर मारना बड़ा कठिन है। हमारे बस का नहीं होगा हुजूर। खाल-वाल उतारने का काम होता कर दें। मारने का काम तो पिगरीवाले ही करते हैं।’’

‘पिगरीवालों से करवाना होता तो तुमसे क्यों कहते। यह काम तुम्हीं करोगे।’’ और मुराद अली ने पाँच रुपये का चरमराता नोट जेब में से निकाल कर नत्थू के जुड़े हाथों के पीछे उसकी जेब में ठूँस दिया था।

‘‘यह तुम्हारे लिए बहुत बड़ा काम नहीं है। सलोतरी साहिब ने फ़रमाइश की तोहम इन्कार कैसे कर देते।’’ फिर मुराद अली ने लापरवाही के अन्दाज़ में कहा : ‘‘उधर मसान के पार पिगरी के सुअर घूमते हैं। एक को पकड़ लो। सलोतरी साहिब खुद बाद में पिगरीवालों से बात कर लेंगे।’’

और नत्थू कुछ कहे या न कहे कि मुराद अली चलने को हुआ था। फिर अपनी पतली-सी छड़ी अपनी टाँगों पर धीरे-धीरे ठकोरते हुए कहने लगा : ‘‘आज ही रात यह काम कर दो। सवेरे-सवेरे जमादार गाड़ी लेकर आ जायेगा, उसमें डलवा देना। भूलना नहीं। वह अपने-आप सलोतरी साहिब के घर पहुँचा देगा। मैं उसे कह दूँगा। समझ लिया ?’’
नत्थू के हाथ अभी भी बँधे लेकिन चरमराता पाँच का नोट जेब में पड़ जाने से मुँह में से बात निकल नहीं पाती थी।
‘‘इधर इलाका मुसलमानी है। किसी मुसलमान ने देख लिया तो लोग बिगड़ेंगे। तुम भी ध्यान रखना। हमें भी यह काम बहुत बुरा लगता है, मगर क्या करें साहिब का हुक्म है, कैसे मोड़ दें।’’ और मुराद अली छड़ी को फिर से टाँगों पर ठकोरता हुआ वहाँ से चला गया था।


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